सजदे में दुआ करना कैसा है

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अस्सलामू अलैकुम दोस्तों, मैं हूं नुसरत और आज मैं आपको एक बहुत प्यारी हदीस के बारे में बताने जा रही हूं। मुझे उम्मीद है की आपको ये हदीस पढ़कर अच्छा लगेगा और आप अपने ईमान को और मजबूत करेंगे।

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अन‌अबि हुरैराता रजि अल्लाहु अनहु , अन्ना रसुल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काला : (अकराबु मा याकुनुल अबदु मिन रब्बी हि वा हुवा साजिदुन , फाआकसारुदु दुआ)

रवाहु मुस्लिम

तरजुमा
अबु हुरैरा रजि अल्लाहु अनहु से रवायत हे की अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया : बन्दा अपने रब से सब से ज्यादा करीब सजदा की हालत मे होता है इसलिए (सजदे मे )कसरत से दुआ करनी चाहिए।

(मुस्लिम : 482)

उसके फवाईद
इससे सजदे की अहमियत और सजदा में दुआ करने की फजिलत मआलुम होती है।
अल्लाह ताला की कुरबत हासिल करना , मोमिन की जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद होना चाहिए।
सजदे में दुआ की‌ जा सकती है जिन में कुरआनी आयत ना हो क्योंकि रुकु और सजदे में तेलावते कुरआन करना मना है।

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